Menu
blogid : 16879 postid : 694005

कविता : मोहब्बत और रोटी

प्रहार
प्रहार
  • 5 Posts
  • 2 Comments

एक   थी  मोहब्बत और थी एक रोटी !

फैसला करो कि कौन बड़ी कौन छोटी ?

मोहब्बत    है    बोली, हूं   मै  खूबसूरत !

मेरी   इस   जहाँ  में, है सबको ज़रूरत !

मेरी   इक  अदा पर, लग जाती कतारें !

मै  हँस  जो अगर दूं, आ जाती बहारें !

मेरी   भौंह  हिलती, तो आती क़यामत !

मै चलती झनककर, तो हिलती रियासत !

मेरा  मिलना यहाँ, होता आसां नही !

मै हूं  मिलती उसे, जो हो प्रेमी सही !

मेरी  व  रोटी की, नही तुलना कोई !

ये  बनते के  संग, गर्म तवे पर गई !

जो  उतरी  तवे से, पहुंची दांत बीच !

इसकी हालत  यही, है नीचों से नीच !

चुप रोटी  तभी  से, मंद बोली थी अब !

जो भी तुमने कहा, मानती सच है सब !

पर  हैं  बातें  कई, जो  तुमने  न बोली !

है कुछ बात खुद की, जो तुमने न खोली !

मै  लाखों  बुरी हूं, पर  ये फिर  भी  सुनो !

सच कही या कि झूठ, ये मन में  तुम गुनो !

पेट में मै  जो हूं, याद आती हो तुम !

पेट खाली जो हो, भूल जाती हो तुम !

लोग  खातिर  मेरी,  तुमसे  दूर  होते !

इक मेरी जुगत में, सुख औ’ चैन खोते !

हो जरूरत तक तुम, मगर मै मजबूरी !

औ’ मेरे बिना  तुम, नही  होती  पूरी !

मै हूं रहती  अगर, तब हैं  रहते सभी !

गर हैं रहते सभी, हाँ तुम भी हो तभी !

तुम भी हो ज़रूरत, मगर मेरे बाद !

बात मेरी ये तुम, सदा रखना याद !

हो निरूत्तर मोहब्बत, चल दी थी वहां से !

हाँ हैसियत  अपनी, वो  जानी  जहाँ  पे !

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh