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एक थी मोहब्बत और थी एक रोटी !
फैसला करो कि कौन बड़ी कौन छोटी ?
मोहब्बत है बोली, हूं मै खूबसूरत !
मेरी इस जहाँ में, है सबको ज़रूरत !
मेरी इक अदा पर, लग जाती कतारें !
मै हँस जो अगर दूं, आ जाती बहारें !
मेरी भौंह हिलती, तो आती क़यामत !
मै चलती झनककर, तो हिलती रियासत !
मेरा मिलना यहाँ, होता आसां नही !
मै हूं मिलती उसे, जो हो प्रेमी सही !
मेरी व रोटी की, नही तुलना कोई !
ये बनते के संग, गर्म तवे पर गई !
जो उतरी तवे से, पहुंची दांत बीच !
इसकी हालत यही, है नीचों से नीच !
चुप रोटी तभी से, मंद बोली थी अब !
जो भी तुमने कहा, मानती सच है सब !
पर हैं बातें कई, जो तुमने न बोली !
है कुछ बात खुद की, जो तुमने न खोली !
मै लाखों बुरी हूं, पर ये फिर भी सुनो !
सच कही या कि झूठ, ये मन में तुम गुनो !
पेट में मै जो हूं, याद आती हो तुम !
पेट खाली जो हो, भूल जाती हो तुम !
लोग खातिर मेरी, तुमसे दूर होते !
इक मेरी जुगत में, सुख औ’ चैन खोते !
हो जरूरत तक तुम, मगर मै मजबूरी !
औ’ मेरे बिना तुम, नही होती पूरी !
मै हूं रहती अगर, तब हैं रहते सभी !
गर हैं रहते सभी, हाँ तुम भी हो तभी !
तुम भी हो ज़रूरत, मगर मेरे बाद !
बात मेरी ये तुम, सदा रखना याद !
हो निरूत्तर मोहब्बत, चल दी थी वहां से !
हाँ हैसियत अपनी, वो जानी जहाँ पे !
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